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बीए सेमेस्टर-3 हिन्दी गद्य

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2645
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-3 हिन्दी गद्य : सरल प्रश्नोत्तर

निबन्ध

 

प्रश्न- निबन्ध साहित्य पर एक निबन्ध लिखिए।

उत्तर -

निबन्ध विधा और हिन्दी निबन्धों का सूत्रपात

निबन्ध विधा - आज निबन्ध गद्य साहित्य की एक विधा के रूप में स्वीकृत है। किन्तु संस्कृत में पद्यमयी रचना भी निबन्ध के अन्तर्गत आ जाती है। इसलिए सरस्वती के सम्पादन काल तक संस्कृत से पूर्ण परिचित हिन्दी के कवि भी गद्य और पद्य दोनों शैलियों में लिखी गई रचनाओं को निबन्ध कहते हैं। आज का हिन्दी निबन्ध साहित्य संस्कृत की उस प्राचीन परम्परा से भिन्न है। डॉ. वाष्णेय के शब्दों में 'निबन्ध रचना केवल खड़ी बोली की विशेषता है खड़ी बोली गद्य के लिए 19 वी  शताब्दी और उसमें भी निबन्ध रचना की दृष्टि से उन्नीसवीं शताब्दी का उत्तरार्ध महत्वपूर्ण है। इस दृष्टि से निबन्ध हिन्दी साहित्य का नितान्त आधुनिक रूप है।

निबन्ध प्रबन्ध और लेख - निबन्ध प्रबन्ध और लेख इन तीनों के स्वरूप का विचार कर लेने से निबन्ध की सीमाओं का सम्यक बोध हो सकता है। निबन्ध और प्रबन्ध ये दोनों शब्द संस्कृत भाषा के है। जिस ग्रन्थ में एक विषय के प्रतिपादनार्थ अनेक व्याख्यायें संग्रह होती है। उसे निबन्ध कहते हैं। 'प्रबन्ध' का क्षेत्र निबन्ध की अपेक्षा अधिक व्यापक है। प्रबन्ध में विभिन्न विषयों में सम्बन्धित अनेक मत संग्रहीत होते हैं। शाब्दिक अर्थ के आधार पर कसावट दोनों की विशेषता मानी जा सकती है। लेख का सामान्य अर्थ तो लिखा हुआ है किन्तु विशेषता जब कोई लेखक किसी विषय पर अपनी प्रवृत्ति, रुची, आदर्श तथा मनोभावों के आधार पर लिखित रूप में विचार प्रकट करता है तो उसे लेख कह सकते हैं। निबन्ध, प्रबन्ध और लेख के लिए क्रमशः ऐसे ट्राटाइज और आर्टिकल शब्द प्रयुक्त होते है। आज कल रेडियों के विस्तार के साथ वार्तो का प्रचार भी बढ़ने लगा है। लेख से इनकी भिन्नता इसी रूप में मानी जा सकती है। इनमें एक विषय पर प्रचार भी बढ़ने लगा है। लेख से इनकी भिन्नता इसी रूप में मानी जा सकती है। कि इनमें एक विषय एक समय में, एक ही बात सामान्य ढंग से कही जा सकती है। लेखों में इस प्रकार का कोई बन्धन नहीं रहता है।

निबन्ध परिभाषा और विशेषताएँ - निबन्ध की परिभाषा अनेक प्रकार से की गई है। यूरोप में हिन्दी साहित्य का जनक प्रसिद्ध फ्रेंच साहित्यकार मानते निबन्ध में आत्माभिव्यक्ति को सर्वाधिक महत्व देता है। अंग्रेजी साहित्य के प्रथम निबन्धकार लार्डवेकन ने निबन्ध को 'डिस्पर्ड मेडिटेशन' कहा है। डॉ. जानसन ने निबन्ध को मस्तिष्क की ढली चली उद्भावना और अव्यवस्थित रचना के रूप में कहा है।

अलेक्ज़ेंडर स्मिथ ने निबन्ध को गीति काव्य के निकट माना है और उसे पूरी तरह रचयिता की मनःस्थिति पर आधृत कहा है। उनके अनुसार रचयिता की जैसी मनःस्थिति होगी वैसी ही निबन्ध रचना होगी। मूड बन जाने पर पहली पंक्ति से लेकर अंतिम पंक्ति तक पूरा निबन्ध उसी प्रकार तैयार हो जाता है जिस प्रकार रेशम के कीड़ों के चारों ओर रेशम।

आक्सफोर्ड इंग्लिश डिक्सनरी में निबन्ध की सभी विशेषताओं को ध्यान में रखकर कहा गया है कि किसी विशिष्ट विषय या शाखा के सम्बन्ध में कहा गया है। जो अपने मूल अपूर्ण सी होती है किन्तु जो अब कथा से सीमित परन्तु शैली में समृद्ध होती है। डब्लू एड हडसन के अनुसार वास्तविक निबन्ध पूर्णतः वैयक्तिक होता है प्रबन्ध वस्तुपरक हो सकते हैं किन्तु निबन्ध व्यक्ति प्रधान होता है।" एडीसन ई. और स्टील ने अपने निबन्धों द्वारा अपने पाठकों का मनोरंजन ही अधिक किया है। एडिसन और स्टील के कुछ बाद डॉ. जानसन के निबन्धों के निबन्धों में तो उपदेशात्मक तृप्ति का प्राधान्य है किन्तु गोल्ड स्मिथ में रमणीयता और परिहास का सुन्दर सामंजस्य है।

सब मिलाकर 18वीं शती के निबन्ध में गम्भीर चिन्तन एवं सुनियोजित विचार गुम्फन की प्रवृत्ति का अभाव स्पष्ट है इसलिये डॉ. जानसन ने निबन्ध को मस्तिष्क टीली चढ़ी उदभावना के रूप में विकसित किया है। उन्नीसवी शती के पूर्वार्ध मे रोमांटिक पुनरुथान के कारण लेखकों के व्यक्तित्व पर अधिक बल दिया गया है। इसका प्रभाव निबन्ध के क्षेत्र पर भी पड़ा। फलस्वरूप इस युग के प्रसिद्ध निबन्धकारों विलियम हैजहिट और चाहसलैंब ने निबन्ध रचना में अपना महत्व दिया। इस युग में बौद्धिकता निबन्धों की मूलभूत विशेषता हो गयी है। विक्टोरिया युग में निबन्धों के क्षेत्र में पुनः परिवर्तन लक्षित होता है। इस युग में प्रायः सभी विद्वान निबन्ध लेखकों मैकाले कार्यालय, रस्किन, मैथ्यूआरनोल्ड, वाल्टरपेटर ने विचारात्मक साहित्यिक निबन्धों की रचना की। निबन्धों में ऐतिहासिक सन्दर्भ तथा साहित्यिक चिन्तन को अधिक महत्व दिया गया। निबन्ध गम्भीर विचारों के अभिव्यक्ति के माध्यम बन गये। इसलिये सन् 1840 में मरे के सम्पादकत्व के अंश रूप में प्रकाशित आक्सफोर्ड डिक्सनरी में निबन्ध को किसी विशिष्ट विषय पर लिखित किसी विशेष दायरे में लिखे गये गद्य विधान के रूप में निरूपित किया गया है। उन्नीसवीं शताब्दी में जे. के. टेस्टरटन, ई. पी लुकासन, ए. जी. गार्डिनर आदि निबन्धकारों ने निबन्धकला का अभूतपूर्व विकास किया है। चेस्टरचन अपनी सूक्तियों विरोधाभास पूर्ण उक्तियों के लिये प्रसिद्ध है। गार्डेनर में हास्य, विश्वसनीयता, वैयक्तिक स्पर्श, विचार, गम्भीर्य और रमणीयता का अद्भुद सामंजस्य है।

निबन्धों का सूत्रपात - डा. वार्ष्णेय लेखों से निबन्धों की भिन्नता पर बल देते हुये प. बालकष्ण भट्ट को हिन्दी का सर्वप्रथम लेखक स्वीकार करते हैं। उनके अनुसार निबन्ध नाम से पुकारी जाने वाली अनेक रचनाएँ निबन्ध नहीं है लेख है। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, बद्रीनारायण चौधरी प्रेमघन, जगमोहनसिंह, अम्बिकादत्त व्यास, राधाचरण गोस्वामी, गोविन्द नारायण मिश्र, आदि लेखकों के ऐसी निबन्ध शैली का पूर्ण रूप से विकास हुआ है। आचार्य शुक्ल ने निबन्धों की परम्परा का सूत्रपात भारतेन्दु युग से स्वीकार किया है। व्यक्ति विशेष के द्वारा विद्या विशेष का उत्थान हो सकता है। उसमें नवीनतायें आ सकती है। उसे विस्तार मिल सकता है किन्तु यह कहना अमुख साहित्यकार या लेखक के द्वारा ही निबन्ध रचना का सूत्रपात हुआ था | कहानियों का जन्म हुआ या नाटकों की परम्परा सामने आई, सर्वथा उचित नहीं, क्योंकि अनेक छोटे-मोट प्रयोगों के बाद विद्या विशेष का स्वरूप निखरकर सामने आता है। ऐसी स्थिति में हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि हिन्दी निबन्धों का प्रारम्भ भारतेन्दु युग से हुआ है।

भारतेन्दु युगीन निबन्ध - भारतेन्दु युग में अंग्रेजी साहित्य के सम्पर्क, भारतीय जीवन में एक नवीन चेतना का उदय पत्र-पत्रिकाओं के प्रचार तथा जनता के सम्पर्क में आने की साहित्यकारों की यह तो इच्छा के फलस्वरूप गद्य के एक नवीन विधान स्वरूप सामने आया इस नवीन विधान को निबन्ध की संज्ञा प्रदान गई. विषय की दृष्टि से विचार करने पर इस युग में प्रधानता को निबन्ध की संज्ञा प्रदान हुई. विषय की दृष्टि से विचार करने पर इस युग में प्रधानता दो प्रकार के निबन्ध दृष्टिगोचर होते हैं-

(क) ऐसे निबन्ध जिनका सीधा सम्बन्ध, सामाजिक समस्याओं से है और जिसमें वस्तु, धर्म राजनीति, आचार-व्यवहार, प्राचीन, गौरव, वर्तमान सामाजिक पतन आदि अनेक विषयों की चर्चा की गई है।

(ख) ऐसे निबन्ध जिनमें विश्राम, इतिहास, मनोभाव आदि पर विचार व्यक्ति किये गये हैं। भारतेन्दु युग के प्रमुख निबन्धकार भारतेन्दु हरिश्चन्द्र प्रतापनारायण मिश्र, बालकृष्ण भट्ट और बद्री नारायण चौधरी 'प्रेमघन है। इनके अतिरिक्त लाला लाल पड़या, काशीनाथ खत्री, चन्द्रभूषण चतुर्वेदी आदि लेखकों ने भी थी थोड़े बहुत निबन्ध लिखे हैं।

निबन्ध का अर्थ और उसके तत्व -

हिन्दी गद्य की एक आधुनिक विद्या 'निबन्ध' है। निबन्ध रचना खड़ी बोली गद्य की एक नवीन विशेषता है। डॉ. लक्ष्मीसागर वार्ष्णेय के अनुसार जिसका इतिहास एक शताब्दी पुराना भी नहीं है।

वस्तुतः 'निबन्ध' शब्द संस्कृत भाषा का है जिसका व्युत्पत्ति परक अर्थ होगा निबन्ध अर्थात अच्छी तरह से बाँधना अर्थात विचारों को संग्रहित करना।

हिन्दी में निबन्ध शब्द का प्रयोग अंग्रेजी शब्द Essay के अर्थ को स्पष्ट करने के लिए होता है।

इस प्रकार हिन्दी में निबन्ध शब्द अंग्रेजी के Essay का समानार्थी है।

Essay का अर्थ है प्रयत्न करना, जांचना, चेष्टा। इस प्रकार Essay का अर्थ उस रचना से है जो अच्छी तरह जाँचकर, प्रयत्न करके की गयी है। इधर निबन्ध का भी अर्थ है अच्छी तरह से बाँधना अर्थात विशेष रूप गठित करना, संगठित करना। इस प्रकार अंग्रेजी शब्द Essay तथा निबन्ध का अर्थ सम्बन्ध जुड़ जाता है।

'निबन्ध' हिन्दी गद्य की आधुनिक विद्या है। हिन्दी का आधुनिक साहित्य पाश्चात्य साहित्य के सम्पर्क में आया तथा उससे प्रभावित भी हुआ है। हिन्दी निबन्ध साहित्य पर भी पाश्चात्य निबन्धों का प्रभाव पड़ा है। अतः निबन्ध के अर्थ को स्पष्ट करने के लिये पाश्चात्य विद्वानों की परिभाषाओं पर सर्वप्रथम विचार करना आवश्यक है।

Essay तथा निबन्ध के अर्थ को स्पष्ट करने वाली अंग्रेजी परिभाषा पर विचार करने के पूर्व एक तथ्य को ध्यान में रखना आश्यक है वह है विभिन्न परिभाषाओं में निहित निबन्ध के विभिन्न अर्थ, समय - समय पर परिवर्तित होने वाले सामाजिक मूल्यों तथा साहित्यिक आदर्शों की ओर संकेत करते हैं। प्रसिद्ध पाश्चात्य विद्वानों की कतिपय परिभाषायें इस प्रकार हैं-

1. मोन्तेन यूरोप में निबन्ध साहित्य के जनक प्रसिद्ध फ्रेंच साहित्यकार मोन्तेन के अनुसार . निबन्ध आत्माभिव्यक्ति का सर्वाधिक महत्वपूर्ण साधन है। तभी वह कहता है -

"I am myself subject of my book"   - Montaigne.

अर्थात "मैं, अपनी पुस्तक का विषय स्वयं हूँ।"

2- डॉ. जॉनसन - डॉ. जानसन मानव मस्तिष्क की स्वच्छन्द बिखरी हुई अपरिपक्क रचना को निबन्ध मानते हैं उनके अनुसार-

"An loose sally of the mind, an irregular undigested - not a regular and orderly composition."

3- लार्ड बेकन - डॉ. जॉनसन से ही मिलती-जुलती परिभाषा लार्ड बेकन की है, जब वह निबन्ध को "बिखरायुक्त चिन्तन कहते हैं।

"The word essay is late but the thing is ancient, for senaca's Epistles to Lucilius if an marks them well, are but essay that is dispersed meditation.”

इस प्रकार हम देखते हैं कि हिन्दी निबन्ध विभिन्न विशेषताओं से युक्त होते हुए निरन्तर अपना स्वरूप विकास करता रहा। यही कारण है कि 'निबन्ध' के विषय में हिन्दी विचारकों की जो परिभाषायें प्राप्त होती है। उनमें निबन्ध की पृथक पृथक विशेषताओं की ओर संकेत है।

1- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल - आधुनिक लक्षणों के अनुसार निबन्ध उसी को कहना चाहिये जिसमें व्यक्तित्व अर्थात व्यक्तिगत विशेषतायें हों। बात ठीक है, यदि ठीक तरह समझी जाये। व्यक्तिगत विशेषता का मतलब यह नहीं है कि उसके प्रदर्शन के लिये विचारों की श्रृंखला न रखी जाये या जान- बूझकर जगह-जगह से तोड़ दी जाये...।

इस परिभाषा में आचार्य शुक्ल निबन्ध के दो प्रमुख तत्वों की ओर संकेत किया है - वैयक्तिकता तथा विचारों की क्रमबद्धता। निबन्धकार जितना प्रबुध होगा 'निबन्ध में उतनी ही अधिक वैयक्तिकता होगी। निबन्ध का वैयक्तिक होना वही विशेषता है जिसकी ओर पाश्चात्य आलोचक डायसन ने अपनी परिभाषा में Subjective कहकर संकेत किया है।

2. बाबू गुलाबराय - निबन्ध उस गद्य रचना को कहते हैं जिनमें एक सीमित आकार के भीतर किसी विषय का वर्णन प्रतिपादित एक विशेष निजीपन, स्वच्छदन्ता, सौष्ठव, सजीवता तथा आवश्यक संगति और सम्बद्धता के साथ किया जाए।

इस परिभाषा मे निबन्ध की कई विशेषताओं के साथ बाबू गुलाबराय निबन्ध के आकार का सीमित होन भी एक विशेषता बतायी है। इस प्रकार इनकी परिभाषा सीमित आकारा की दृष्टि से हरवर्ट रीड की परिभाषा के निकट ठहरती है।

निबन्ध के तत्व 'गुण' उपर्युक्त पाश्चात्य तथा भारतीय लेखकों के निबन्ध विषयक परिभाषाओ का अध्ययन करने के पश्चात हमें उन प्रमुख लक्षणों का परिचय प्राप्त होता है। जो निबन्ध के आवश्यक तत्व कहला सकते हैं। वे तत्व इस प्रकार हैं-

(1) निबन्ध गद्य की एक आधुनिक विधा है।
(2) आकार सीमित होता है।
(3) वैयक्तिकता की प्रमुखता है।
(4) प्रभाव की समग्रता होती है।
(5) रोचकता, सजीवता क्रमबद्धता संगति होती है।

वस्तुतः निबन्ध गद्य की आधुनिक विधा है जिसकी ओर पहले ही संकेत किया जा चुका है। 'गद्य की अनेक विधाओं की अपेक्षा निबन्ध का कलेवर निश्चित रूप से सीमित होना चाहिए। साहित्यकार के सामर्थ की परीक्षा निबन्ध मे होती है। गागर में सागर भरने जैसा कार्य होता है निबन्धकार का परन्तु यह आवश्यक तत्व तो है परन्तु अनिवार्य नहीं।

वास्तव में निबन्ध की प्रमुख विशेषता उसकी वैयक्तिकता है। इस विशेषता के महत्व को अनेक विद्वानों ने स्वीकार किया है। वैयक्तिकता का तात्पर्य है व्यक्तित्व की छाप। यह व्यक्तित्व निबन्धकार का होता है। यह वैयक्तिकता ही निबन्ध को लेख से पृथक कर निबन्ध कहलाने का गौरव प्रदान करती है। प्रभाव की समग्रता का तात्पर्य है पाठकों के ऊपर प्रभाव डालने की क्षमता। निबन्ध का पाठकों पर यह प्रभाव केवल एक होना चाहिये।

इन तत्वों के अतिरिक्त निबन्ध में रोचकता होनी चाहिये, विचारो की क्रमबद्धता होनी चाहिये। साथ ही विचारों का प्रतिपादन सजीव होना चाहिए तथा उसमें संगति भी होना चाहिए।

इस प्रकार उपर्युक्त पाँच तत्वों से युक्त निबन्ध ही सही अर्थों में एक निबन्ध कहा जा सकता है। अतः निबन्ध की एक पूर्ण परिभाषा निर्धारित करते हुये हम कह सकते हैं 'निबन्ध गद्य की वह आधुनिक विद्या है, जिसमें एक सीमित आकार के अन्तर्गत किसी विषय का प्रतिपादन वैयक्तिकता, स्वच्छन्दता, सजीवता, सौष्ठव, क्रमबद्धता, आवश्यक संगति तथा प्रभावान्वित के साथ किया गया है।

'निबन्ध के प्रकार'

निबन्धों का वर्गीकरण एक कठिन कार्य है। इसके कई कारण है। एक निबन्धों की विषय-वस्तु की व्यापकता। इस व्यापक विषय-वस्तु के विषय तथा शैली में अनेक परिवर्तन होते हैं। भारतेन्दु युग से लेकर आधुनिक युग तक विषय-वस्तु तथा शैली की दृष्टि से निबन्धों में बहुत परिवर्तन हो चुका है। इन परिवर्तनों के कारण निबन्धों के विभिन्न प्रकार भी बढ़ते जाते हैं। कुछ भेद तो ऐसे है जो एक-दुसरे के पर्याय है फिर भी निबन्ध के इस प्रमुख दो भेद माने जाते हैं -

(क) परात्मक या विषय प्रधान,
(ख) निजात्मक या विषय प्रधान।

परात्मक निबन्ध उसे कहते हैं जिसमें किसी विषय की प्रधानता रहती है। निजात्मक निबन्ध उसे कहते हैं जिसमें विषय के स्थान पर व्यक्तित्व को प्रधानता दी जाती है। इन दोनों निबन्ध प्रकारों के पुनः कई उपभेद हैं, जो इस प्रकार है -

(क) परात्मक निबन्ध इसके दो उपभेद है.

1- वर्णात्मक,
2- विवरणात्मक।

(ख) निजात्मक इसके अन्तर्गत तीन प्रकार के निबन्ध आते है -

1- विचारात्मक,
2 भावात्मक तथा
3- आत्मपरक।

इस प्रकार दोनों प्रकार के निबन्धों को मिलाकर निबन्धों के कुल पाँच प्रकार मिलते हैं - वर्णात्मक, विवरणात्मक विचारात्मक, भावात्मक तथा आत्मपरक।

'निबन्ध रचना में शैली की उपयोगिता'

भाषा के द्वारा लेखक अपने विचारों को अभिव्यक्त करता है। इसी प्रकार भाषा का लक्ष्य है . विचारों की प्रेषणीयता। भाषा कितनी ही सुन्दर क्यों न हो, तब तक प्रभावपूर्ण नहीं होती है जब तक की शैलीयुक्त न हो। वस्तुतः शैली भावारूपी कलेवर की आत्मा है। लेखकर की अनुभूतियों की कलात्मक अभिव्यक्ति का नाम ही शैली है। अपने विचारों का आदान-प्रदान तो साधारणजन भी करते है और भाषा को माध्यम बनाते हैं पर इनमें शैली की विशिष्टता नहीं होती है। शैली तो वह है जो लेखक के मस्तिष्क तथा हृदय के सम्पूर्ण वैभव का साक्षात्कार कराती है। इस प्रकार प्रभावपूर्ण सरस तथा सम्पूर्ण अभिव्यक्ति की एक अनिवार्य शर्त शैली है। पहले ही कहा जा चुका है। कि शैली अनुभूति की कलापूर्ण अभिव्यक्ति है। केवल उपयुक्त शब्द का चयन अपितु उनके सम्यक प्रयोग का भी महत्व है। इसीलिए निबन्धकार को शब्द की उत्पत्ति, उसके वास्तविक अर्थ तथा सटीक प्रयोग का पूर्ण ज्ञान होना चाहिए। इस प्रकार के ज्ञान से युक्त होकर ही निबन्धकार अपने विचारों की सशक्त अभिव्यक्ति में सक्षम हो सकता है।

निबन्धकार को शब्द शक्ति से भी परिचित होना चाहिये। निबन्ध केवल विचारों की सीधी-सीधी अभिव्यक्ति मात्र नहीं है, शब्द के अभिधेयार्थ से कार्य चल जाता है। अभिव्यक्ति को प्रभावपूर्ण बनाने के लिए शब्दों के लक्ष्यार्थ तथा व्यंग्यार्थ का भी सहारा लेना पड़ता है। इन अर्थों से युक्त होकर भाषा की ध्वन्यात्मकता बढ़ जाती है। शैली में एक वैशिष्टय आ जाता है जो न केवल उसकी कलात्मक सुन्दरता को बढ़ाता है बल्कि उसकी प्रभावात्मक शक्ति में भी वृद्धि करता है।

शब्दों के क्रमबद्ध समूह का नाम वाक्य है। निबन्ध में वाक्य की स्थिति बहुत महत्वपूर्ण होती है। कुशल वाक्य योजना ही निबन्ध की सफलता की गारण्टी' है। इसके लिये शब्द योजना को चतुरता विरामादि चिन्हों का सम्यक प्रयोग आदि की आवश्यकता होती है। वाक्य लम्बे होने चाहिए या छोटे इस विषय में कोई स्पष्ट नियम नहीं है पर गम्भीर गहन विषयों की विवेचना के लिए छोटे तत्व सरल वाक्यों के प्रयोग की उपयोगिता सर्वमान्य है।

'व्यापकता, सौन्दर्य तथा ओज शैली की प्रधान विशेषताएँ है। विचारों की स्पष्टता, क्रमबद्धता पूर्वापर सम्बन्ध, सीधी तथा स्पष्ट अभिव्यक्ति शैली की अन्य प्रमुख विशेषताएँ है। इसके अतिरिक्त शैली को विषय के अनुरूप भी होना चाहिए तभी विवेचनीय विषय की प्रभावात्मकता असंदिग्ध हो सकती है। इस प्रकार शैली का निबन्ध साहित्य में विशेष महत्व है। विषयानुसार इसके अनेक भेद मिलते हैं -

शैली के भेद - निबन्ध साहित्य में प्रयुक्त शैली के रूपों का स्पष्ट निर्देश कठिन है। क्योंकि शैली विभाजन का कोई निश्चित आधार नहीं है फिर भी निबन्धों की सर्वाधिक मान्य शैली के रूप में निम्नलिखित शैलियों का नाम लिया जा सकता है -

1- प्रसाद शैली,
2- व्यास शैली,
3- समास शैली,
4- विवेचन शैली,
5- व्यंग्य शैली,
6- तरंग शैली,
7- विक्षेप शैली
8- प्रलाप या आवेग शैली,
9- धारा शैली।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- आदिकाल के हिन्दी गद्य साहित्य का परिचय दीजिए।
  2. प्रश्न- हिन्दी की विधाओं का उल्लेख करते हुए सभी विधाओं पर संक्षिप्त रूप से प्रकाश डालिए।
  3. प्रश्न- हिन्दी नाटक के उद्भव एवं विकास को स्पष्ट कीजिए।
  4. प्रश्न- कहानी साहित्य के उद्भव एवं विकास को स्पष्ट कीजिए।
  5. प्रश्न- हिन्दी निबन्ध के विकास पर विकास यात्रा पर प्रकाश डालिए।
  6. प्रश्न- स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी आलोचना पर प्रकाश डालिए।
  7. प्रश्न- 'आत्मकथा' की चार विशेषतायें लिखिये।
  8. प्रश्न- लघु कथा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  9. प्रश्न- हिन्दी गद्य की पाँच नवीन विधाओं के नाम लिखकर उनका अति संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  10. प्रश्न- आख्यायिका एवं कथा पर टिप्पणी लिखिये।
  11. प्रश्न- सम्पादकीय लेखन का वर्णन कीजिए।
  12. प्रश्न- ब्लॉग का अर्थ बताइये।
  13. प्रश्न- रेडियो रूपक एवं पटकथा लेखन पर टिप्पणी लिखिये।
  14. प्रश्न- हिन्दी कहानी के स्वरूप एवं विकास पर प्रकाश डालिये।
  15. प्रश्न- प्रेमचंद पूर्व हिन्दी कहानी की स्थिति पर प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- नई कहानी आन्दोलन का वर्णन कीजिये।
  17. प्रश्न- हिन्दी उपन्यास के उद्भव एवं विकास पर एक संक्षिप्त निबन्ध लिखिए।
  18. प्रश्न- उपन्यास और कहानी में क्या अन्तर है ? स्पष्ट कीजिए ?
  19. प्रश्न- हिन्दी एकांकी के विकास में रामकुमार वर्मा के योगदान पर संक्षिप्त विचार प्रस्तुत कीजिए।
  20. प्रश्न- हिन्दी एकांकी का विकास बताते हुए हिन्दी के प्रमुख एकांकीकारों का परिचय दीजिए।
  21. प्रश्न- सिद्ध कीजिए कि डा. रामकुमार वर्मा आधुनिक एकांकी के जन्मदाता हैं।
  22. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के उद्भव और विकास पर प्रकाश डालिए।
  23. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के क्षेत्र में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का योगदान बताइये।
  24. प्रश्न- निबन्ध साहित्य पर एक निबन्ध लिखिए।
  25. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' के आधार पर जीवनी और संस्मरण का अन्तर स्पष्ट कीजिए, साथ ही उनकी मूलभूत विशेषताओं की भी विवेचना कीजिए।
  26. प्रश्न- 'रिपोर्ताज' का आशय स्पष्ट कीजिए।
  27. प्रश्न- आत्मकथा और जीवनी में अन्तर बताइये।
  28. प्रश्न- हिन्दी की हास्य-व्यंग्य विधा से आप क्या समझते हैं ? इसके विकास का विवेचन कीजिए।
  29. प्रश्न- कहानी के उद्भव और विकास पर क्रमिक प्रकाश डालिए।
  30. प्रश्न- सचेतन कहानी आंदोलन पर प्रकाश डालिए।
  31. प्रश्न- जनवादी कहानी आंदोलन के बारे में आप क्या जानते हैं ?
  32. प्रश्न- समांतर कहानी आंदोलन के मुख्य आग्रह क्या थे ?
  33. प्रश्न- हिन्दी डायरी लेखन पर प्रकाश डालिए।
  34. प्रश्न- यात्रा सहित्य की विशेषतायें बताइये।
  35. अध्याय - 3 : झाँसी की रानी - वृन्दावनलाल वर्मा (व्याख्या भाग )
  36. प्रश्न- उपन्यासकार वृन्दावनलाल वर्मा के जीवन वृत्त एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  37. प्रश्न- झाँसी की रानी उपन्यास में वर्मा जी ने सामाजिक चेतना को जगाने का पूरा प्रयास किया है। इस कथन को समझाइये।
  38. प्रश्न- 'झाँसी की रानी' उपन्यास में रानी लक्ष्मीबाई के चरित्र पर प्रकाश डालिये।
  39. प्रश्न- झाँसी की रानी के सन्दर्भ में मुख्य पुरुष पात्रों की चारित्रिक विशेषताएँ बताइये।
  40. प्रश्न- 'झाँसी की रानी' उपन्यास के पात्र खुदाबख्श और गुलाम गौस खाँ के चरित्र की तुलना करते हुए बताईये कि आपको इन दोनों पात्रों में से किसने अधिक प्रभावित किया और क्यों?
  41. प्रश्न- पेशवा बाजीराव द्वितीय का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  42. अध्याय - 4 : पंच परमेश्वर - प्रेमचन्द (व्याख्या भाग)
  43. प्रश्न- 'पंच परमेश्वर' कहानी का सारांश लिखिए।
  44. प्रश्न- जुम्मन शेख और अलगू चौधरी की शिक्षा, योग्यता और मान-सम्मान की तुलना कीजिए।
  45. प्रश्न- “अपने उत्तरदायित्व का ज्ञान बहुधा हमारे संकुचित व्यवहारों का सुधारक होता है।" इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
  46. अध्याय - 5 : पाजेब - जैनेन्द्र (व्याख्या भाग)
  47. प्रश्न- श्री जैनेन्द्र जैन द्वारा रचित कहानी 'पाजेब' का सारांश अपने शब्दों में लिखिये।
  48. प्रश्न- 'पाजेब' कहानी के उद्देश्य को स्पष्ट कीजिए।
  49. प्रश्न- 'पाजेब' कहानी की भाषा एवं शैली की विवेचना कीजिए।
  50. अध्याय - 6 : गैंग्रीन - अज्ञेय (व्याख्या भाग)
  51. प्रश्न- कहानी कला के तत्त्वों के आधार पर अज्ञेय द्वारा रचित 'गैंग्रीन' कहानी का विवेचन कीजिए।
  52. प्रश्न- कहानी 'गैंग्रीन' में अज्ञेय जी मालती की घुटन को किस प्रकार चित्रित करते हैं?
  53. प्रश्न- अज्ञेय द्वारा रचित कहानी 'गैंग्रीन' की भाषा पर प्रकाश डालिए।
  54. अध्याय - 7 : परदा - यशपाल (व्याख्या भाग)
  55. प्रश्न- कहानी कला की दृष्टि से 'परदा' कहानी की समीक्षा कीजिए।
  56. प्रश्न- 'परदा' कहानी का खान किस वर्ग विशेष का प्रतिनिधित्व करता है, तर्क सहित इस कथन की पुष्टि कीजिये।
  57. प्रश्न- यशपाल जी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  58. अध्याय - 8 : तीसरी कसम - फणीश्वरनाथ रेणु (व्याख्या भाग)
  59. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी कला की समीक्षा कीजिए।
  60. प्रश्न- रेणु की 'तीसरी कसम' कहानी के विशेष अपने मन्तव्य प्रकट कीजिए।
  61. प्रश्न- हीरामन के चरित्र पर प्रकाश डालिए।
  62. प्रश्न- हीराबाई का चरित्र चित्रण कीजिए।
  63. प्रश्न- 'तीसरी कसम' कहानी की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
  64. प्रश्न- 'तीसरी कसम' उर्फ मारे गये गुलफाम कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
  65. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु का संक्षिप्त जीवन परिचय लिखिए।
  66. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु जी के रचनाओं का वर्णन कीजिए।
  67. प्रश्न- हीराबाई को हीरामन का कौन-सा गीत सबसे अच्छा लगता है ?
  68. प्रश्न- हीरामन की चारित्रिक विशेषताएँ बताइए?
  69. अध्याय - 9 : पिता - ज्ञान रंजन (व्याख्या भाग)
  70. प्रश्न- कहानीकार ज्ञान रंजन की कहानी कला पर प्रकाश डालिए।
  71. प्रश्न- कहानी 'पिता' पारिवारिक समस्या प्रधान कहानी है? स्पष्ट कीजिए।
  72. प्रश्न- कहानी 'पिता' में लेखक वातावरण की सृष्टि कैसे करता है?
  73. अध्याय - 10 : ध्रुवस्वामिनी - जयशंकर प्रसाद (व्याख्या भाग)
  74. प्रश्न- ध्रुवस्वामिनी नाटक का कथासार अपने शब्दों में व्यक्त कीजिए।
  75. प्रश्न- नाटक के तत्वों के आधार पर ध्रुवस्वामिनी नाटक की समीक्षा कीजिए।
  76. प्रश्न- ध्रुवस्वामिनी नाटक के आधार पर चन्द्रगुप्त के चरित्र की विशेषतायें बताइए।
  77. प्रश्न- 'ध्रुवस्वामिनी नाटक में इतिहास और कल्पना का सुन्दर सामंजस्य हुआ है। इस कथन की समीक्षा कीजिए।
  78. प्रश्न- ऐतिहासिक दृष्टि से ध्रुवस्वामिनी की कथावस्तु पर प्रकाश डालिए।
  79. प्रश्न- 'ध्रुवस्वामिनी' नाटक का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
  80. प्रश्न- 'धुवस्वामिनी' नाटक के अन्तर्द्वन्द्व किस रूप में सामने आया है ?
  81. प्रश्न- क्या ध्रुवस्वामिनी एक प्रसादान्त नाटक है ?
  82. प्रश्न- 'ध्रुवस्वामिनी' में प्रयुक्त किसी 'गीत' पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
  83. प्रश्न- प्रसाद के नाटक 'ध्रुवस्वामिनी' की भाषा सम्बन्धी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  84. अध्याय - 11 : दीपदान - डॉ. राजकुमार वर्मा (व्याख्या भाग)
  85. प्रश्न- " अपने जीवन का दीप मैंने रक्त की धारा पर तैरा दिया है।" 'दीपदान' एकांकी में पन्ना धाय के इस कथन के आधार पर उसका चरित्र-चित्रण कीजिए।
  86. प्रश्न- 'दीपदान' एकांकी का कथासार लिखिए।
  87. प्रश्न- 'दीपदान' एकांकी का उद्देश्य लिखिए।
  88. प्रश्न- "बनवीर की महत्त्वाकांक्षा ने उसे हत्यारा बनवीर बना दिया। " " दीपदान' एकांकी के आधार पर इस कथन के आलोक में बनवीर का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  89. अध्याय - 12 : लक्ष्मी का स्वागत - उपेन्द्रनाथ अश्क (व्याख्या भाग)
  90. प्रश्न- 'लक्ष्मी का स्वागत' एकांकी की कथावस्तु लिखिए।
  91. प्रश्न- प्रस्तुत एकांकी के शीर्षक की उपयुक्तता बताइए।
  92. प्रश्न- 'लक्ष्मी का स्वागत' एकांकी के एकमात्र स्त्री पात्र रौशन की माँ का चरित्रांकन कीजिए।
  93. अध्याय - 13 : भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (व्याख्या भाग)
  94. प्रश्न- भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है?' निबन्ध का सारांश लिखिए।
  95. प्रश्न- लेखक ने "हमारे हिन्दुस्तानी लोग तो रेल की गाड़ी हैं।" वाक्य क्यों कहा?
  96. प्रश्न- "परदेशी वस्तु और परदेशी भाषा का भरोसा मत रखो।" कथन से क्या तात्पर्य है?
  97. अध्याय - 14 : मित्रता - आचार्य रामचन्द्र शुक्ल (व्याख्या भाग)
  98. प्रश्न- 'मित्रता' पाठ का सारांश लिखिए।
  99. प्रश्न- सच्चे मित्र की विशेषताएँ लिखिए।
  100. प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की भाषा-शैली पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  101. अध्याय - 15 : अशोक के फूल - हजारी प्रसाद द्विवेदी (व्याख्या भाग)
  102. प्रश्न- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के निबंध 'अशोक के फूल' के नाम की सार्थकता पर विचार करते हुए उसका सार लिखिए तथा उसके द्वारा दिये गये सन्देश पर विचार कीजिए।
  103. प्रश्न- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के निबंध 'अशोक के फूल' के आधार पर उनकी निबन्ध-शैली की समीक्षा कीजिए।
  104. अध्याय - 16 : उत्तरा फाल्गुनी के आसपास - कुबेरनाथ राय (व्याख्या भाग)
  105. प्रश्न- निबन्धकार कुबेरनाथ राय का संक्षिप्त जीवन और साहित्य का परिचय देते हुए साहित्य में स्थान निर्धारित कीजिए।
  106. प्रश्न- कुबेरनाथ राय द्वारा रचित 'उत्तरा फाल्गुनी के आस-पास' का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
  107. प्रश्न- कुबेरनाथ राय के निबन्धों की भाषा लिखिए।
  108. प्रश्न- उत्तरा फाल्गुनी से लेखक का आशय क्या है?
  109. अध्याय - 17 : तुम चन्दन हम पानी - डॉ. विद्यानिवास मिश्र (व्याख्या भाग)
  110. प्रश्न- विद्यानिवास मिश्र की निबन्ध शैली का विश्लेषण कीजिए।
  111. प्रश्न- "विद्यानिवास मिश्र के निबन्ध उनके स्वच्छ व्यक्तित्व की महत्वपूर्ण अभिव्यक्ति हैं।" उपरोक्त कथन के संदर्भ में अपने विचार प्रकट कीजिए।
  112. प्रश्न- पं. विद्यानिवास मिश्र के निबन्धों में प्रयुक्त भाषा की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  113. अध्याय - 18 : रेखाचित्र (गिल्लू) - महादेवी वर्मा (व्याख्या भाग)
  114. प्रश्न- 'गिल्लू' नामक रेखाचित्र का सारांश लिखिए।
  115. प्रश्न- सोनजूही में लगी पीली कली देखकर लेखिका के मन में किन विचारों ने जन्म लिया?
  116. प्रश्न- गिल्लू के जाने के बाद वातावरण में क्या परिवर्तन हुए?
  117. अध्याय - 19 : संस्मरण (तीन बरस का साथी) - रामविलास शर्मा (व्याख्या भाग)
  118. प्रश्न- संस्मरण के तत्त्वों के आधार पर 'तीस बरस का साथी : रामविलास शर्मा' संस्मरण की समीक्षा कीजिए।
  119. प्रश्न- 'तीस बरस का साथी' संस्मरण के आधार पर रामविलास शर्मा की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  120. अध्याय - 20 : जीवनी अंश (आवारा मसीहा ) - विष्णु प्रभाकर (व्याख्या भाग)
  121. प्रश्न- विष्णु प्रभाकर की कृति आवारा मसीहा में जनसाधारण की भाषा का प्रयोग किया गया है। इस कथन की समीक्षा कीजिए।
  122. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' अथवा 'पथ के साथी' कृति का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  123. प्रश्न- विष्णु प्रभाकर के 'आवारा मसीहा' का नायक कौन है ? उसका चरित्र-चित्रण कीजिए।
  124. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' में समाज से सम्बन्धित समस्याओं को संक्षेप में लिखिए।
  125. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' में बंगाली समाज का चित्रण किस प्रकार किया गया है ? स्पष्ट कीजिए।
  126. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' के रचनाकार का वैशिष्ट्य वर्णित कीजिये।
  127. अध्याय - 21 : रिपोर्ताज (मानुष बने रहो ) - फणीश्वरनाथ 'रेणु' (व्याख्या भाग)
  128. प्रश्न- फणीश्वरनाथ 'रेणु' कृत 'मानुष बने रहो' रिपोर्ताज का सारांश लिखिए।
  129. प्रश्न- 'मानुष बने रहो' रिपोर्ताज में रेणु जी किस समाज की कल्पना करते हैं?
  130. प्रश्न- 'मानुष बने रहो' रिपोर्ताज में लेखक रेणु जी ने 'मानुष बने रहो' की क्या परिभाषा दी है?
  131. अध्याय - 22 : व्यंग्य (भोलाराम का जीव) - हरिशंकर परसाई (व्याख्या भाग)
  132. प्रश्न- प्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई द्वारा रचित व्यंग्य ' भोलाराम का जीव' का सारांश लिखिए।
  133. प्रश्न- 'भोलाराम का जीव' कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
  134. प्रश्न- हरिशंकर परसाई की रचनाधर्मिता और व्यंग्य के स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  135. अध्याय - 23 : यात्रा वृत्तांत (त्रेनम की ओर) - राहुल सांकृत्यायन (व्याख्या भाग)
  136. प्रश्न- यात्रावृत्त लेखन कला के तत्त्वों के आधार पर 'त्रेनम की ओर' यात्रावृत्त की समीक्षा कीजिए।
  137. प्रश्न- राहुल सांकृत्यायन के यात्रा वृत्तान्तों के महत्व का उल्लेख कीजिए।
  138. अध्याय - 24 : डायरी (एक लेखक की डायरी) - मुक्तिबोध (व्याख्या भाग)
  139. प्रश्न- गजानन माधव मुक्तिबोध द्वारा रचित 'एक साहित्यिक की डायरी' कृति के अंश 'तीसरा क्षण' की समीक्षा कीजिए।
  140. अध्याय - 25 : इण्टरव्यू (मैं इनसे मिला - श्री सूर्यकान्त त्रिपाठी) - पद्म सिंह शर्मा 'कमलेश' (व्याख्या भाग)
  141. प्रश्न- "मैं इनसे मिला" इंटरव्यू का सारांश लिखिए।
  142. प्रश्न- पद्मसिंह शर्मा कमलेश की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
  143. अध्याय - 26 : आत्मकथा (जूठन) - ओमप्रकाश वाल्मीकि (व्याख्या भाग)
  144. प्रश्न- ओमप्रकाश वाल्मीकि के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर संक्षेप में प्रकाश डालते हुए 'जूठन' शीर्षक आत्मकथा की समीक्षा कीजिए।
  145. प्रश्न- आत्मकथा 'जूठन' का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
  146. प्रश्न- दलित साहित्य क्या है? ओमप्रकाश वाल्मीकि के साहित्य के परिप्रेक्ष्य में स्पष्ट कीजिए।
  147. प्रश्न- 'जूठन' आत्मकथा की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  148. प्रश्न- 'जूठन' आत्मकथा की भाषिक-योजना पर प्रकाश डालिए।

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